मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य नर्सिंग
Maternal and Child Health Nursing
मासिक धर्म प्राम्भ होने की अवस्था से 30 से 40 वर्ष तक स्त्रियों का प्रजनन कल होता है। गर्भावस्था का प्राम्भ गर्भाधान कहलाता है। गर्भाधान निषेचन से प्रारम्भ होता। है डिम्ब गर्भाशय में स्थानांतरित होता है तथा उसकी दीवार से लगकर पूर्ण शिशु का विकास होता है।
निषेचन Fertilization
निषेचन वह प्रक्रिया है जिसमें शुक्राणु का परिपक़्व डिम्ब से सम्मिलित होता है। डिम्ब, फेलोपियन नलिका में लगे रोये द्वारा डिम्ब ग्रंथि से ग्रहण कर लिया जाता है जोकि गर्भधान से पहले गर्भाशय को घेरे रहता है। योनि में व्याप्त हजारों सुक्राणुओ में से केवल 300-500 शुक्राणु ही डिम्ब तक पहुँच पते है। इस स्थिति में पहुंचने में उन्हें एक घंटा लगता है। इतने अधिक शुक्राणुओं में से केवल एक शुक्राणु व् डिम्ब दोनों में 23-23 गुणसूत्र होते है। निषेचन के पश्चात, अब एक ही कोशिका में 46 गुड़सूत्र हो जाते है।
निषेचित डिम्ब का विकास Development Of Fertile Ovum
निषेचन के पश्चात एकमत्र डिम्ब, विभाजित होने लगता है तथा 12 हफ़्तों तक यह इतनी तीव्र गति से विकसित होता है की इस कल में चेहरा, मेरुदण्ड व् हाथ-पैर देखे जा सकते है।
अपरा Placenta
इसका निर्माण निषेचन के 6 हफ्तों के पश्चात प्रारम्भ होता है तथा 10-12 हफ्तों तक पूर्ण होता हैं। अपरा निम्न कार्य है
* भ्रूण को गर्भाशय की दीवार से दृणता से जोड़ना।
* माँ के रुधिर से पोषण व् आक्सीजन भूर्ण को प्रदान करना।
* कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य बहार निकालने योग्य पदार्थो को भूर्ण से माँ के तंत्र में पहुंचना।
भ्रूण का विकास Development Of Embryo
गर्भाशय के अंदर विकसित होने वाले बालक को भ्रूण। गर्भाशय के अंदर भ्रूण के विकास की अवस्थाएँ निम्न्वत है
* गर्भस्थ शिशु के ह्रदय का निर्माण 20 वे दिन हो जाता है तथा वह 21 वे दिन धड़कने भी लगता है।
* पांचवे हफ्ते तक हाथ-पैरों का निर्माण तथा एक बड़े से सर का विकास हो जाता है।
* सातवें हफ्ते में शिशु के हाथ-पैरों की अँगुलियों तथा नाक का विकास हो जाता है। मुँह व् कण का निरमन हो जाता है। इस समय शिशु का आकर एक इंच से कम होता है।
* 12वे हफ्ते तक शिशु पूर्ण आकर प्राप्त क्र लेता है तथा इसकी लम्बाई तीन इंच तक होती है।
* 14वे हफ्ते तक मांसपेशियां व्यवस्थित हो जाती है तथा लिंग का निर्धारण व् उसकी पहचान सम्भव हो जाती है।
* 18वे हफ्ते तक माँ भ्रूण की गति का अनुभव करने में समर्थ हो जाती है।
* 20वे हफ्ते तक बालक की अंगुलियों की चाप का विकास हो जाता है।
* सातवें महीने के दौरान, शिशु की त्वचा के निचे वसा एकत्र होने लगती है। वह अपनी आँख खोलने में समर्थ हो जाता है तथा आँख की भोहों,पलकों व् सर के बालों का विकास हो जाता है।
* 9बे महीने में शिशु,उत्पन्न होने की स्थिति लेने लगता है।
गर्भवस्था Pregnancy
भ्रूण पूर्ण रूप से विकसित होने तथा स्वतंत्र रूप से अपने जीवन को विकसित करने में समर्थ होने के लिए नौ महीने का समय लेता है।
गर्भावस्था की अवधि 40 हफ्ते अथवा 280 दिन अथवा 9 महीने व् 7 दिन निर्धारित की गयी है। जिसकी गड़ना अंतिम मासिक धर्म के पहले दिन से की जाती है। गर्भावस्था को 3 अवस्थाओं में बांटा जा सकता है जिसमें प्रत्येक अवस्था का समय लगभग 12 सप्ताह का होता है। जिसका विवरण निम्न्वत है
प्रथम अवस्था (12 हफ्ते) First Stage गर्भावस्था की प्रथम अवस्था के सामान्य लक्षण निमन है
गर्भावस्था धर्म का बंद होना।
* मासिक धर्म का बंद होना।
* प्रातः कल में जी मिचलाना व् उलटी होना (मॉर्निंग सिकनेस )
* जल्दी-जल्दी मूत्र त्यागने की इक्छा होना।
* स्तनों के आकर में वृद्धि तथा तनाव उत्पन्न होना।
* थकान का अनुभव होना।
* स्तन के निपिल का गड़े रंग का हो जाना।
प्रसवावस्थ एवं देखभाल Delivery and Care
बच्चे को जन्म देने की प्रकिया मन के लिए बहुत कष्टदायक है। यह मन का भी दूसरा जन्म होता है क्योंकि कोई भी पेचीदगी पैदा हो सकती है। माँ को उस समाय बहुत चिंता होती है। प्रायः प्रसव पीड़ा कई घंटों तक रहती है और उस दौरान अस्पताल ले जाने के लिए प्रबंध करने अथवा दाई या डॉक्टर को बुलाने के लिए काफी समय होता है।
बच्चे के जन्म की अवस्थाये
Stages of Child Birth
बच्चे अवस्था अथवा प्रसव पीड़ा को चार अवस्थाओं में बांटा जाता है
पहली अवस्था यह अवस्था लगभग 12-14 घंटो की है। इसमें गर्भाशय सिकुड़ कर बच्चे को बाहर निकलने की कोशिश करता है। यह अवस्था अन्य अवस्थाओं की अपेछा लम्बी अवधि की होती है।
दूसरी अवस्थ ये अवस्था लगभग 2 घंटो की होती है। इस हालत में बच्चा योनि द्वार के निकट खिसक अत है। इसमें बच्चा बाहर आ जाता है।
तीसरी अवस्था यह लगभग 30 मिनिट की होती है। इस अवस्था में अपरा ( Placenta ) बहार आ जाती है। बाद में गर्भाशय को साफ करके यदि गर्भ का कोई अवशेष अंदर रह गया हो, तो उसे बहार निकल देते है।
चौथी अवस्था इस अवस्था में माँ को और ध्यान देना होता है ताकि और रूधिरस्राव से प्रसवोत्तर रूधिरस्राव ( post-partum Haemorrhage ) का खतरा पैदा न हो जाये।
प्रसव को बेहतर ढंग से करवाने के लिए आवश्यक वस्तुएँ Essential Things for Better Performed फॉर Delivery
* रोगाणु रोधक साबुन जैसे-डिटॉल, सेवलॉन।
* बहुत से साफ कपडे अथवा फाटे पुराने कपडे।
* हाथ और नाख़ून साफ करने के लिए एक साफ ब्रुश।
* स्वच्छ रुई।
* एक नया रेजर ब्लेड
* गर्भनाल को बाँधने के लिए मोटा धागा या दो रिबन।
* कीटाणु रहित सिरिंज और सुइयाँ।
* दो प्याले,एक हाथ धोने के लिए और दूसरा जेर (After Birth ) को संभालने और उसके निरीक्षण के लिए।
* माँ के पेट में से बच्चे के धड़कन को सुनने क्ले लिए फिटोस्कोप अथवा भ्रूण सम्बन्धी स्टैथोस्कोप।
* दो हीमोस्टेट (Hemosstats ) गर्भनाल को पकड़ने के लिए अथवा रूधिरस्राव वाली नाड़ियों के लिए।
* किटाणुरहित सुई, बच्चे के जन्म के बाद योनि द्वार को सिलने के लिए।
* बच्चे की आँखों के लिए सिल्वर नाइट्रेट ड्रॉप्स।
प्रसव के दौरान संक्रमण को रोकना To STop Infection During Delivery
यदि प्रसव घर पर करवाया गया है, तो महिलाओं में संक्रमण का खतरा अधिक होता है, इसलिए प्रसव की तैयारी और प्रसव निमन तथ्यों पर ध्यान देंना जरूरी है
* सर्दी,जुकाम,टी.बी.,खाँसी आदि से प्रभवित लोगों को जच्चा से दूर रखे।
* प्रसव करवाते समय चाइये। रुमाल को भी त्रिकोणाकार में बाँचा जा सकता है।
* अपने फालतू कपडे उतर दें, यदि उपलब्ध हो, तो प्लास्टिक एप्रेन पहन लें ताकि संक्रमण से बचाव हो सके।
* अपनी शर्ट के बाजु ऊपर चढ़ाकर रखे।
* अपने हाथों को अछि प्रकार धोकर, अँगुलियों और नखों को ब्रश की सहायता से साफ करे। यदि संभव हो, तो डिस्पोजेबल दस्ताने पहने।
प्रसव की प्रकिया Proces of Delivery
* प्रसव वाले बेड या टेबल को धक् दें ताकि ये दूषित न हो।
* दूसरी अवस्था के दौरान गर्भवती को नीचे की और जोर लगाने के लिए कहे।
* बच्चे के बाहर आने पर अपनी अंगुली के इर्द-गिर्द एक जाली का टुकड़ा या कोई साफ कपडा लपेट कर बच्चे का मुँह साफ़ करें।
* देखे की बच्चा रोया है या नहीं।
* माँ की तरफ वाली कोर्ड (Cord ) को क्लैम्प करके इसे बच्चे की ओर दबाकर दूसरा क्लैम्प लगा दे।
* कुछ देर तक अपरा के बाहर आने की प्रतीक्षा करें। अपरा के बाहर आने पर गर्भाशय को साफ करें और गर्भ के अवशेष निकाल दें।
* बच्चे के सर को नीचा करके रखें , जब तक की बच्चे के कन्धे दिखाई न दें।
* नवजात बच्चे हाथ से बहुत जल्दी फिसल जाते हाँ इसलिए उनका ध्यान रखना चाइये।
प्रसव के बाद रूधिरस्राव Haemorrahage After Delivery
बचे के जन्म के बाद होने वाले रूधिरस्राव को लोकिया कहते है। यह चौदह दिनों तक होता है। तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
1. लोकिया रुबरा (Locia Rubra ) यह प्रसव के चार दिनों तक रहता है। इसमें RBC's और WBC's होते है। अन्तः कला (Endothelium ) इसका रंग लाल होता है।
2. लोकिया सिरोसा (Lokia Serosa ) इसका स्त्राव पांचवें से नौवें दिन होता है और इसमें WBC's अन्तः कला कोशिकाएं और श्लेष्मा होते है। इसका रंग गहरा भूरा अथवा कुछ-कुछ पीला होता है।
3. लोकिया एलबा (Locia Alba ) यह स्त्राव नौवें से चौदहवें दिन तक होता है। इसमें WBC's अन्तः कला कोशकाये होती है। इसका रंग सफेद होता है।
गर्भपात Miscarriage
छः महीने से पहले भ्रूण के नष्ट होने को गर्भपात कहते है। यह कई प्रकार से हो सकता है जिसका विवरण निम्न्वत है
संभावित गर्भपात इसमें मन के उचित आराम न करने से गर्भपात हो सकता है। यदि योनि मार्ग से रूधिरस्राव होने लगता है, तोउसको रोके और गर्भवती को डॉक्टर के पास ले कर जाएँ।
अनिवार्य गर्भपात जब गर्भावस्था ऐसी स्थिति में पहुंच जाती है जब उसे जारी रखना असंभव हो।
समाप्त गर्भपात ऐसी स्थिति में भ्रूण गर्भ में मर जाता है।
अपूर्ण गर्भपात ऐसी हालत में भ्रूण की मृत्यु हो जाती है। गर्भ के कुछ अवशेष बाहर आ जाते है जबकि कुछ अंदर ही रह जाते है।
पूर्ण गर्भपात इसमें भ्रूण समाप्त हो जाता है और गर्भ के सरे भाग बाहर आ जाते है।
पूर्व-प्रसव एवं बचपन के रोगों का सम्पूर्ण प्रबंधन
Intergrated Management of Neonatal एंड Childhood llness (IMNCI )
बचपन के रोगों का सम्पूर्ण प्रबंधन (IMNCI ) योजना को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) और UNICEF द्वारा अन्य अनेक शाखाओ की सहभागिता द्वारा 1990 के मध्य अस्तित्व में लाया गया।
IMNCI योजना के तत्व Elements of IMNCI Plant
इस योजना के मुख्य तत्व निम्न्वत है
* सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार लाना।
* पारिवारिक और सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाना।
* रोगी प्रबंधन और स्वास्थ्य कर्मचारियों के काम करने के ढंगो में सुधर लाना।
IMNCI योजना के उद्देश्य Objectives of IMNCI Plan
* IMNCI योजना का मुख्य उद्देश्य रोगों का इलाज, रोकथाम और स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना है।
* बच्चों की रोगों के कारन होने वाली मृत्यु-दर, विकलांगता और भयानक रोगों को फैलने से रोकना।
* पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों के पौष्टिक आहार और वृद्धि में सुधर लाना है।
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