टीकाकरण क्‍या है What is vaccination

बच्‍चो के शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु टीके लगाए जाते हैं जिससे बच्‍चो के शरीर में रोग से लडने की शक्ति बढती है। टीकाकरण से बच्‍चों मे कई सक्रांमक बीमारियों की रोकथाम होती है तथा समुदाय के स्‍वास्‍थ्‍य के स्‍तर मे सुधार होता है। 



टीका vaccine 
स्वस्थ शरीर स्वास्थ्य मन तक के सफर में विकसित देशों  जहां प्रति हजार नवजात शिशु में से 10  से 20 शिशु अपनी आंखे खोलने के एक महीने के अंदर मृत्यु को प्राप्त हो  जाते हैं वह अधिकांश विकासशील देशो में प्रति हजार में से लगभग 100 से 200 शिशु जन्म के पहले वर्ष में ही काल की गोद में समा जाते हैं इससे हमारा देश भी अछूता नहीं  रहा हैं। भारत में हर 3 महीने में से दो गर्भवती महिलाये रक्त की कमी और कुपोषण की शिकार होती हैं। कम वजन वाले शिशुओं को  औसत स्वास्थ्य  शिशुओं की अपेक्षा संक्रामक रोग होने का  ज्यादा खतरा रहता हैं जन्म के पहले दो तीन वर्ष में बार बार बीमार पड़ना बच्चो को कई  ऐसे मानसिक रोगो बीमारिया हो  जाती हैं जो दिखती नहीं परन्तु बच्चो के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। 

                                              जिन बच्चो को शैशवस्था में  माँ दूध उचित मात्रा में प्राप्त नहीं हो पाता उन बच्चो में रोग से लड़ने में  प्रतिरोधक क्षमता कम होती हैं। माँ के दूध के दूध में कुछ ऐसे प्रतिरोधक तत्व होते हे जो उसे बीमारी से लड़ने में ताकत सुरक्षा प्रदान करते हैं इसके अलावा बच्चो में आधे  से अधिक बीमारिया दूषित पानी की वजह से होती हैं उलटी दस्त पेशिच पोलियो टायफ़ॉइड कई तरह की बीमारी दूषित पानी के कारण होते है संक्रामक रोगो की भी लम्बी सूचि हे जिनका नितांत अत्यंत आवश्य्क हे - खसरा, कालरा , कंजक्टिवाइरस, ब्रोंकाइटिस, डायरिया, टिटनेस ,टीबी ,न्यूमोनिया पेशिच चिकनपॉक्स रेबीज आदि बीमारिया हैं। इसमें पीलिया कुकरखासी आदि भी संक्रामक रोग हैं। 

भारत में निम्न बीमारियों के बचने के लिए  प्रतरोधक टीके उपलब्ध हैं -टीबी ,डिप्थीरिया ,टिटनेस ,कालीखांसी पोलियो ,खसरा।

टीके का औचित्य Vaccine rationale
कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनसे बचने के लिए शैशावस्था  में ही टीके लगाए जाते हैं ऐसे टीके को प्राथमिक टीके कहां जाता हैं। ये सुई ( सिरिंज ) से या फिर किस अन्य तरिके जैसे तरल ड्रॉप के द्वारा मुहं  में टपका दिये जाते हैं या  शिशु के रक्त में पहुंचा दिए जाते हैं। 

टीके क्यों लगवाए ? Why get vaccinated?
बहुत से रोग रोगजनक जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होते हैं इन रोगो से बचने के लिए अभी तक कोई औषधीय उपचार उपलब्ध नहीं हुआ जो की शरीर को बिना  कोई क्षति पहुँचाए इन रोगजनक जीवाणुओं का नाश कर सके।  अतः 
वैज्ञानिको ने ऐसे रोगो की चिकित्सा करने के बजाय इनसे बचाव की विधिया खोजना सुरु किया। इनमे से कुछ  रोगो  से बचने के लिए टीके कुछ के लिए सुई कुछ दवा और ड्राप के रूप गोलिया केप्सूल अदि के रूप में निर्माण किया रोग से बचने के लिए टीके  लगवा लेने से रोग होने  का भय कम रहता  हैं  टीके लगवाकर बच्चो में रोगविशेष में रोग निरोधक क्षमता उतपन्न हो जाती हैं। यदी  रोग  हो भी जाता हैं तो यह घातक सिद्ध नहीं होता इसलिए रोगो से बचने लिए ठीके आवश्य लगवाए। 

टीके कब दिये जाते है?When are vaccines given?
रोगो से बचाव के लिए उन्हे बचपन में ही टीका लगवा देना चाहिए समय पर टीका लगवा देने से किसी प्रकार का संक्रमण या जानलेवा रोग का भय नहीं रहता। यदी रोग हो जाता हैं तो भयानक क्षति नई पहुंचा सकेगा और रोगी शीघ्र स्वस्थ्य हो हैं अतः जहां तक सम्भव हो सके एक वर्ष आयु के अंदर चेचक,डिप्थीरिया ,टिटनेस ,कालीखांसी पोलियो ,खसरा क्षय रोग टाइफॉयड इत्यादि के टीके जरूर लगवाए। 

आवश्यक सुचना - यदि पिछले तीन सालो मे दो टीके लग चुके हो तो केवल एक ही टीका पर्याप्‍त है। 

टीके कैसे दिये जाते है? How are vaccines given?
जानलेवा संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए बच्‍चों को सही समय पर टीके अवश्‍य लगवाएं।
गर्भव‍ती महिला एंव गर्भ मे पल रहे बच्‍चे को टिटेनस की बीमारी से बचाने के लिये
गर्भावस्‍था मे‍ जितनी जल्‍दी हो सके टिटेनसटाक्‍साइड पहला टीका तथा  द्वितीय टीका एक माह के अन्‍तराल से लगवाय। 

आवश्यक सुचना - यदि पिछले तीन सालो मे दो टीके लग चुके हो तो केवल एक ही टीका पर्याप्‍त है। 

शिशुओ के लिए टीके इस तरह लगवाए -

1. 11/2 माह की आयु पर बी.‍सी.जी. का टीका

2. हेपेटाईटिस B का प्रथम टीका

3. डी.पी.टी.का प्रथम टीका

3. पोलियो की प्रथम खुराक

4. 21/2 माह की आयु पर डी.पी.टी. का द्वितीय टीका

5. हेपेटाईटिस B का द्वितीय टीका

6. पोलियो की द्वितीय खुराक

7. 31/2 माह की आयु पर डी.पी.टी. का तृतीय टीका

8. हेपेटाईटिस B का तृतीय टीका

9. पोलियो की तृतीय खुराक

10. 9-12 माह की आयु पर खसरा का टीका

11. 16-24 माह की आयु पर डी.पी.टी.का बूस्‍टर टीका

12. पोलियो की बूस्‍टर टीका

13. 5-6 वर्ष की आयु पर डी. पी. टी. का टीका 

14. 10-16 वर्ष की आयु पर टी.टी. का टीका

टीके कब नहीं लगवाए ? When not to get vaccines?
अगर किसी कारणवश बच्चा अस्वस्थ अर्थात बुखार, खासी , दस्त  आदि हो रहे हो तो ऐसी हालत में टीके लगवाए जब तक बच्चा रोगमुक्त न हो जाए  और अगर किसी  बच्चे को दाद , एकिजमा  हो तो चेचक का टीका  नहीं 
लगवाए। 

टीकाकरण से बच्‍चों मे किंन-किंन रोगो से सुरक्षा संभव है?
Is vaccination protection against which diseases possible in children?
विश्व मे ऐसे कई तरह के गम्‍भीर संक्रामक रोग ‍हैं जो प्रति-दिन हजारों बच्‍चो की जान ले रहे हैं अगर सही समय पर उन्हें टीके न लगवाए तो  वह अपंग लाचार बन सकते हैं इसके अतिरिक्‍त गर्भवती महिलाओ को भी टीके लगाकर उन्‍हे व उनके नवजात शिशुओं को भी जो माँ गर्भ में पल रहा जन्म से पहले कुछ टीके लग जाते हैं जिससे माँ और शिशु दोनों स्वस्थ रह सके ।  इनमे से कुछ रोगो के नाम इस प्रकार हैं - 
1. हेपेटाईटिस "B" 2 .काली खांसी  3.खसरा  4 .टेटनस  5 .पोलियो  6. क्षय रोग 7 .गलघोंटू 


चेचक का टीका  
Chicken pox
बच्चे के जन्म के एक सप्ताह बाद से किसी भी समय टीका।   बच्चो को एक साल की आयु होते-होते कई टीके लगवाने पड़ते है।  अतः ठीके लगवाने में अधिक विलम्ब नहीं करना चाइये।  कम आयु में, जब बच्चा उलट -पलट नहीं सकता , टीका लगवाना सुविधाजनक हो जाता  है।  टीका लगने के बाद बच्चों को प्रायः  बुखार हो जाता है।  जिस स्थान पर टिका लगाया जाता है, वह स्थान फूल जाता है, वहां दाने निकल आते है और प्रायः वहाँ घाव भीहो जाता है।  ऐसी अवस्था में करवट बदलने पर ठीके के स्थान पर चोट लग जाने का भय रहता है।  टिके  के स्थान को जल से बचाएं चाइये तथा ध्यान रखना चाइये की चले फूटें नहीं।  छाले फूटने  रे से उपयुक्त मलहम का व्यवहार करना चाइये।  चोट न लगने पर  छाला स्वयं सुखकर गिर पड़ता है, लेकिन स्थान विशेष के चर्म में दाग पड़  जाता है।  चेचक का टीका प्रत्येक तीन वर्ष पर या जब रोग फेल रहा हो, तब जरूर लगवा देना चाइये। 

खसरे का टीका Measles vaccine
खसरे  बचने के लिए जन्म के छह माह  के बाद शिशु को कभी भी इसके टीके लगवाए जा सकते है, लेकिन एक महीने के बच्चे को भी टीका लगाने में कोई खतरा नहीं रहता है। 

क्षय का टीका Decay vaccine
साधारणतः  एक माह की आयु से पूर्व ही बच्चों को बी सी जी  चेचक का टीका लगवा देना चाइये।  तीन माह की आयु में भी बच्चों को बी सी जी का टिका लगवाया जा सकता है।  यदि किसी कारणवश उस आयु में टीका नहीं लग सका हो तो बाद में भी  बाद बी सी जी का टीका  जरूर लगवा देना चाइये। 

कुकुरखाँसी, डिप्थीरिया, टिटनेस आदि के भिन्न तरह के टीके   
Different types of vaccines of mushroom, diphtheria, tetanus etc.
इन रोगों से बचाव के अलग-अलग और इन तीनों के मिले टीके ट्रिपल वैक्सीन या ट्रिपल एंटीजेन के रूप में सुई (Injection ) द्वारा दिए जाते है।  इस टिके  की तीन सुइयाँ एक-एक महीने के अंतर पर दी जाती है।  सुई देने के बाद प्रायः हल्का  बुखार भी हो जाता है, लेकिन इससे घबराना नहीं चाइये।  बुखार स्वयं बिना दवा के छूट जाता। है  जब कभी  भी चोट लगने से जख्म हो जाए, तब टिटनेस  का टीका लगा देना चाइये।
 
टायफाइड का टीका Typhoid vaccine
टायफाइड के टीके  की पूरी खुराक बड़ो को एक बार दे दी जाती है, लेकिन बच्चो को देने के लिए खुराक को दो-तीन हिस्सों में बाँटकर सुई द्वारा दिया जाता है।   सुई लगने पर बाँह में सूजन और दर्द होता है।  अक्सर इसके साथ ज्वर,सिरदर्द और बेचैनी भी होती है।  लेकिन, ये सब लक्षण धीरे-धीरे दूर हो जाते है।  टायफाइड के ठीके का सर केवल एक साल तक रहता है।  अतः बीच -बीच में इसे अवश्य लगवाते रहना चाइये। 

पोलियो ड्रॉप्स का टीका Polio drops vaccine
पोलियो एक भयंकर रोग है।  इसमें बच्चो के अंगो में लकवा मर जाता है, अतः इसे बचाव के लिए बच्चो को पोलियो ड्रॉप्स समय पर  पिलवा देना चाइये।  बच्चे की आयु दो माह होते ही ड्रॉप्स आरम्भ कर देना चहिये और 6  महीने से 8 माह सप्ताह के अंतराल में 3 बार पिलवाना चाइये।  इसके बाद हर साल पोलियो का 'बूस्टर डोज 'दिलाना चाइये।इसे पांच साल तक दिलाते रहना चाइये टीका कहाँ लगवाना चाइये। 

एम् एम् आर वेक्सीन M M R vaccine
खसरा, जर्मन मिजल्स और कर्णफेर  से बचाव के लिए उक्त वेक्सीन, डॉक्टर की सलाह के  लगवा देनी चाइये।  यह 12 से 15  महीने के अंतराल पर दिया जाता है।  इसका प्रभाव 10-15 साल तक रहता है। 

हैजा का टीका कहाँ लगवाना चाइये ? Where should we get cholera vaccine?
हैजा, चेचक आदि के टीके नगरपालिका या गाँव में जिला-परिषद् की और से मुफ्त लगाएं जाते है।  महामारी के रूप में फैलने पर टीके देने वाले घर-घर जाकर हैजे की सुई और चेचक के  टीके  देते है।  ट्रिपल वेक्सीन  आदि की सुई दवा बेचने वालों के यहाँ मिलती है।  डॉक्टरों की सलाह से इन्हें समय पर सुयोग्य कम्पाउंडर या डॉक्टर से लगवा सकते हैं ।  किसी-किसी शहर में कभी-कभी डॉक्टरों की संस्थाओं द्वारा पोलियो की दवा मुफ्त दी जाती है।  जब कभी ऐसा सुअवसर मिले, तो इसे चूकनानहीं चाहिए  .रोग होने पर इलाज करने की अपेक्षा टीका लगवाकर रोग से बचने में ही बुद्धिमानी है। 
 
राट्रीय स्वास्थ्य नीति National Health Poilicy 
वर्ष 1983 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में स्वास्थ्य सेवाओं के वर्ष 2000 तक प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों  ,क्रियान्वयन एवं   व्यापक ढाँचों को तैयार ककया गया था।  स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 1983 के बाद के स्वास्थ्य सेवा परिद्रश्य की समीक्षा  राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 तैयार की।  राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 में इस बात पर जोर दिया गया है कि नागरिकों को दी जाने वाली सेवाओं  स्वास्थ्य नीति की गुणवत्ता में  होगा जब उसके लिए अधिक वित्तीय और सामग्री संशन उपलब्ध कराएं जाएँगे।  सेवा प्रदाता अपनी जिम्मेदारी को व्यापारिक दृष्टि से न देख कर सेवा के रूप में समझेंगे; नागरिक सेवाओं में गुणवत्ता के सुधर की मांग करेंगे, स्वास्थ्य सेवाप्रद प्रणाली, खासकर सार्वजानिक क्षेत्र में सवेदी तथा प्रश्न में।  देखते हुए की देश की स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताएँ  काफी व्यापक एवं परिवर्तनशील है मानवीय तथा वित्तीय कमी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2002 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य विभिन प्राथमिकओ  में से चयन  था था इसमें अलग दो  लक्ष्य निर्धरित किये गए है।   दसवीं पंचवर्षीय योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 के नीतियों एवं रणनीतियों के कारगर  निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कर  निर्धारित समयावधि में स्वास्थ्य एवं जनसांख्यिक परिवर्तनों को पूरा कर सकेगा। 

                                              दसवीं योजना के महत्व के क्षेत्रो में प्राम्भिक, द्वितीयक और उच्च स्तरों पर स्वास्थ्य देख-रेख के मौजूदा  पुनर्गठन और पुनर्सरचना किया जाना शामिल है  स्पष्ट भौगोलिक क्षेत्र में बसी जनसंख्या को स्वास्थ्य देख-रेख सम्बन्धी सेवाएं मुहैया करने की क्षमता हो और एक- उपयुक्त सम्पर्क हो।  जनस्वास्थ्य देख-रेख सुविधाएँ मुहैया करने वालों की स्थानीय जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज संथाओं की शक्तियों  प्रत्यायोजन, के मौजूदा ऊधर्व रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के सभी पहलुओं का अनुप्रस्थ एकीकरण,  की मॉनिटरिंग, आईईईसी, प्रशिक्षण एवं प्रशासनिक व्यवस्थाएं, सुचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाले उचित दो तरफा परामर्शी तंत्र का विकास स्वास्थ्य देख-रेख के वित्त पोषण की वैकल्पिक प्रणालियों की खोज  विभिन्न हिस्सा धारकों-सरकार, निजी और स्वेछिक  क्षेत्र की भूमिका को परिभाषित करना अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। 

पल्स पोलियो अभियान Pulse Polio Campaign 
पोलियो एक ऐसा रोग है जो लोगों को विकलांग बनाकर उन्हें जिंदगी बार के लिए असामान्य बना देता है। बचपन में होने वाली इस बीमारी में आमतौर पर टांगों का विकास रुक जाता है और वे छोटी व् पतली रह जाती है।  यह बीमारी 'पोलियोमलाइटिस 'नामक वायरस से  होती है।

                                           पल्स पोलियो कार्यक्रम सबसे पहले 1994-95 ई. में प्रयोग के तौर पर दिल्ली शुरू किया गया।  दिल्ली में पल्स पोलियो को मिले समर्थन उत्साहित होकर इस कार्यक्रम को 1995-96 पुरे  किया गया।  इस कार्क्रम का मुख्य उद्देश्य यह है की पहाड़ी, रेगिस्तानी,द्वीपीय, जंगली अथवा किसी भी दूर-दराज के इलाके में कोई भी बच्चा पोलियो वैक्सीन पिने से वंचित न रह जाये।  यह कराक्रम अभी चालू रहेगा।  पोलियो रोगी को  अंतर्गत 'सॉबिन वैक्सीन 'की दो बून्द खुराक मुँह के माध्यम से तथा 'साल्क वैक्सीन'  खुराक इंजेक्शन के माध्यम से दी जाती है।  पोलियो उन्मूलन के लिए चले जा रहे इस अभियान  परिणामस्वरूप अक्टूम्बर 2001 तक मात्रा 100 नए मामले  आये।  2001 में केवल 6 राज्य ऐसे थे जनाः  मामले दीहै दिए।  इनमें भी सबसे जयदा उत्तर प्रदेश (82 मामले ), उसके बाद बिहार में (13 मामले ) रिपोर्ट।   15 जून, 2002 तक पोलियो के मात्रा 85 नए मामले प्रकाश  26  जुलाई 2003 ई. तक देश के 52 जिलों से ९३ नए मांमले प्रकाश में आये थे। 

राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम National TB Control  Programme 

राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण  कार्यक्रम का प्रारम्भ सर्कार  1962 में किया गया।  जिला स्तरीय क्षयरोग कार्यक्रम, राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम की रीढ़ की हड्डी है।  इस कार्यक्रम के अन्तगर्त जिला क्षयरोग केंद्र, अपने लिए एक कार्यप्रालिय यूनिट का  निर्माण   सर्वेसर्वा जिला क्षयरोग अधिकारी होता है। राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण मुख्य उद्देश्य थे- 
(क) क्षयरोग से पीड़ित रोगियों की पहचान कर उन्हें उचित इलाज  प्रदान करना, 

(ख) क्षय रोग से पीड़ित की संख्या स्टार में गिरावट  ,जिससे यह समाज में एक गंभीर नागरिक स्वास्थ्य संशय न बन जाये।  राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम केंद्र प्रायोजित , जिसमें 50% राज्य सर्कार की भी भागीदारी होती है।  राज्य सरका द्वारा  क्षयरोग क्लीनिकों में रोगियों को मुफ्त दवाइयाँ दी जाती थीं।  1992  ई. में एक विशेषज्ञ समिती द्वारा राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम  समीक्षा की गयी तथा इस समिति की सिफारिशों  के आधार पर संशोधित राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम डॉट्स प्रणाली के साथ 26 मार्च 1997 ई. को प्रारम्भ किया गया।  इस कार्यक्रम को विश्व बैंक डी.ए एन आई डी ए, दी ऍफ़ आई डी,यू इस ए आई डी, जी डी एफ और जी एफ इ टी एम् की सहायता से देश में चरणवद्ध  क्रियान्वित किया जा रहा है।  वर्तमान में संशोधित क्षयरोग नियंत्रण  500 जिलो\इकाइयों में लागु किया गया था।  इस कराक्रम में इलाज  औसत 84 % रहता है, जो की एक अच्छा संकेत है।  क्षयरोग नियंत्रण  अंतरास्ट्रीय लक्ष्य  करने के लिए सन  2005  तक पुरे देश को संशोधित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत  लाने का लक्ष्य रखा था। 

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