शरीर-संरचना विज्ञान 
    Body structure Anatomy              

 Physical Structure skeleton 



























यह वह विज्ञान है, जिसमें शरीर के विभिन्न अंगो की रचना का ज्ञान होता है।अगर शरीर रचना का है ज्ञान हो  तो कभी कोई रोग नही करेगा परेशान।  शरीर-क्रिया विज्ञान को भली-भांति समझने के लिए शरीर-रचना का भी ज्ञान होना आवश्यक है। शरीर के बह्रा एवं आंतरिक अंगों की बनावट स्थिति का ज्ञान हमें शरीर-रचना विज्ञान से ही होता है।  ह्रदय संकुचन,ह्रदय गति, हड्डियों की बनावट,ऊतकों का निर्माण, रुधिर का बनना इसका ही कार्य क्षेत्र है।  आदि का अध्यन, शरीर-रचना विज्ञान उसके आकर,आकृति भार, स्थिति,अन्य अंगों से उसका सम्बन्ध तथा बनावट का वर्णन करता है। कई जटिल प्रक्रियाएँ और प्रणालियाँ मिलकर एक मानव शरीर की संरचना करती हैं।मानव शरीर में समन्वय के लिए लाखों कोशिकाएँ और कई अंग कार्य करते हैं, जिससे हम हमारे जीवन के रोज के कार्य हम कर पाते हैं। मानव शरीर की शारीरिक रचना ज्ञान का होना जरूरी हैं।  





मानव पाचन तंत्र Human Digestive System
Human Digestive System

पाचन तंत्र आपके भोजन को पचाने का कार्य करता है। भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रियाएँ जिनके द्वारा जटिल एवं  अघुलनशील भोज्य कणों को सरल, घुलनशील एवं  अवशोषण योग्य भोज्य कानों में परिवर्तित किया जाता है, पाचन कहलाता है।  पाचन तंत्र की मदद से भोजन पर्याप्त पोषक तत्वों में बदलते हुए, शरीर की आवश्यकता को पूरा करता है। इन पोषक तत्वों से ही शरीर को ऊर्जा मिलती है और कोशिकाएं ठीक होती है।भोजन के पाचन की क्रिया पाँच चरण जैसे- अंतग्रहण, पाचन,अवशोषण,स्वांगीकरण तथा मल त्याग, में पूर्ण होती है।  मनुष्य के पाचन तंत्र में आहारनाल मुख, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, क्षुद्रांत्र (छोटी आंत ) वहदांत्र (बड़ी आंत) मलाशय और मल द्वारा से बनी होती है।  सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि यकृत और अग्न्याशय है।

पाचन तंत्र को मजबूत बनाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए
What measures should be taken to strengthen the digestive system
नियमित रूप से व्यायाम करने से आप कई रोगों से बच सकते हैं। नियमित व्यायाम से आपके शरीर के सभी अंग और पाचन क्रिया सही बनी रहती है। इसके साथ ही आपका वजन भी नियंत्रण में रहता है। इन खूबियों के चलते आपको अपने लिए समय निकालकर रोजाना व्यायाम करना चाहिए।
 
मुखगुहा में पाचन Digestion in Buccal Cavity 
मुख के अंदर दांत भोजन को चबाते है।  जीभ स्वाद को पहचानती है और भोजन को लार के साथ मिलाकर इसे अच्छी तरह से चबाने के लिए सुगम बनाती है।  लार में उपस्थित टायलिन या एमाइलेज एन्जाइम स्टार्च पर कार्य करता है और स्टार्च को माल्टोज शर्करा में अपघटित कर देता है तथा माल्टेज एंजाइम माल्टोज शर्करा को ग्लुकोन में बदल देता है।
                           मनुष्य के ऊपरी व्  कुल जबड़ों में कुल 32 दांत  होते है। मनुष्य के दांत गर्तदन्ति (Thecodont) द्विवारदंति( Diphyodont ) तथा विषमदन्ति ( Heterodont ) तीन प्रकार के होते है।  मनुष्य के जबड़े में दो कृन्तक, एक रदनक, दो अग्रचवर्णक तथा तीन चवरनक पाए जाते है। 

जीभ tongue
यह मुखगुहा के निचले भाग पर स्थित एक मोती मांसल रचना होती है, जिसकी ऊपरी सतह पर कई छोटे-छोटे अंकुर (Papillae ) होते हाँ, जिन्हे स्वाद कलियाँ (taste Buds ) कहते है।  जीभ के अग्रभाग से मीठे स्वाद का पश्च भाग से कड़वे स्वाद का तथा बगल के भाग से खट्टे स्वाद का आभास होते है।  टायलिन एन्जाइम के कारन भोजन के स्वाद में मिठास आ जाती है। 

आमाशय में पाचन Digestion in Stomach 
मुखगुहा से लार से सं हुआ भोजन निगल द्वार के द्वारा ग्रासनली ( Oesophagus ) में पहुँचता है, जहां से क्रमाकुंचन की प्रक्रिया द्द्वारा ग्रासनली से आमाशय में भोजन पहुँचता है। आमाशय में प्रोटीन एवं वसा का पाचन प्रारम्भ हो जाता है, परन्तु कार्बोहाइड्रेट का पाचन नहीं होता है।  आमाशय में पैलोरिक ग्रंथियों से जठर रस (Gastric Juice ) निकलता है, जबकि आँक्सीन्टीक या भित्तीय कोशिकाओं से HCI निकलता है। 
जठर रस में पेप्सिन और रेनिन एंजाइम होते है, जिसमें से पेप्सिन प्रोटीन को पाचन कर उसे पेपटोन्स में बदल देती है, जबकि रेनिन दूध में घुली हुई प्रोटीन केसीन को ठोस प्रोटीन कैल्शियम पैराक्सिनेट में परिवर्तित कर देती है।  इस प्रकार दूध फट जाता है।  अब पेप्सिन इस प्रोटीन ( केसीन ) को पेपटोन्स में परिवर्तित कर देती है।  आमाशय में वसा पाचक एंजाइम जठर लाइपेज वसीय पदार्थो पर क्रिया कर उसे छोटे-छोटे अणुओं में तोड़ देता है। 
आमाशय में स्त्रावित HCI मुख्य रूप से भोजन के माध्यम को अम्लीय बनाता है, जिससे लार के टाइलिन की क्रिया समाप्त हो जाती है।  यह अम्ल भोजन के साथ आय जीवाणुओ को नष्ट कर देता है तथा एन्जाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है। 

छोटी आँत में पित्त, अग्न्याशयी रस तथा अंत रस आकर मिलते है तथा भोजन का पाचन पूर्ण करते है।  पित्त एवं अग्न्याशयी रस आंत के pH को क्षरीय करते है।  इसमें तीन एन्जाइम  होते है, जिसमें टीप्सिन, प्रोटीन को पालीपेप्टाइड एवं एमिनो अम्ल में एमाइलेज स्टार्च को सरल शर्करा में जबकि लाइपेज वसीय पदार्थो को गिल्सराल एवं  वसीय अम्ल (fatty acid ) में तोड़ देता है। 
छोटी आंत आहारनाल का सबसे लम्बा भाग होता। है आहारनाल के इसी भाग में पाचन की क्रिया पूर्ण होती है। 

बड़ी आंत में पाचन Digestion in Large Intenstine 
बड़ी आंत में उपस्थित चूषक कोशकाएँ ( Goblet cells ) श्लेष्मा का स्त्रावण करती है।  यहाँ पर आपके भोजन से जल का अवशोषण होता है फलतः मॉल गाढ़ा हो जाता है।  शाकाहारी जंतुओं के भोजन में उपस्थित सेलुलोज का पाचन यहीं  ,जहाँ विद्यमान सहजीवी जीवाणु (symbiotic bacteria ) इस सेलुलोज को शर्करा में बदल देती है। 

पचे हुए भोजन  अवशोषण एवं स्वांगीकरण 
Absorption and Assimilation of Digestive Food 
छोटी आंत में ही पचे भोजन का अवशोषण मुख्य रूप से होता है।  छोटी आंत की सतह पर अंगुलीनुमा उभर पाए जाते है , जिन्हे आंत रसाकुंरो ( interstinal villi ) कहते है।  इन्हीं रसांकुरो पर रुधिर कोशिकाएं और लिम्फ वाहिनियों का जाल बिछा होता है,  भोजन के अवशोष में सहायक होती है।  
रुधिर कोशिकाओं से ग्लूकोज तथा अमीनो अम्ल का अवशोषण जबकि वसा अम्ल एवं गिल्सरोल का अवशोष लसीका (Lymph ) द्वारा होता है। 

अपचित अपवर्जन Undesired exclusion
बड़ी आंत में जल का अवशोषण होने के बाद शेष बचा अपचित भोजन मलाशय के माध्यम से मलद्वार द्वारा बहार निकल जाता है।  अंततः इसी प्रक्रिया पाचन की क्रिया समाप्त होती है। 
पाचन से संबंधित ग्रंधियाँ Glands Related to  Digestion पाचन से संबंधित ग्रंथियां इस प्रकार है। 

लार ग्रंथि  Salivary Glands 
तीन जोड़ी; जैसे- 
(1) अधोजहवा ग्रंथि (Sublingual glands ) जिह्वा के दोनों और एक-एक
 (ii ) अधोजम्भ ग्रंथि ( sub -maxillary Gland ) निचले जबड़े के मध्य एक-एक 
(iii ) कर्ण पूर्व ग्रंथि (parotid gland ) कर्णो के निचे-दोनों और एक-एक स्थित होते है।  लार में लगभग 99% जल, लगभग 1 % एन्जाइम होते है।  इसमें टायलिन एवं  लाइसोजाइम नामक एंजाइम होता है। लार कुछ तत्व; जैसे-लेड शिक्षा (Pb ) मर्करी (Hg ) व् आयोडाइड (I 2 ) का स्त्रावण करती है। 

यकृत Liver 
यह सबसे बड़ी ग्रथि है।  मनुष्य में इसका भार लगभग 1.5 किग्रा होता है।  यकृत के शिरापात्रो (sinusoids ) में कुप्फर कोशिकाएं पाई जाती है, जो मृत RBCs व जीवाणुओ का भक्षण करती है। 

यकृत के कार्य Functions of Liver 
  • हिपेरिन,फाइब्रिनोजन तथा प्रोथरामिबन का स्त्रावण करता है। 
  • यूरिया का संश्लेषण करता है तथा विटामिन-A, D तथा B का निर्माण करता है। 
  • अमीनो अम्लों का डेमिनेशन तथा विषैले पदार्थो का विषहरण ( detoxification ) करता है। 
  • फेगोसाइटोसिस क्रिया द्वारा जीवाणुओ का भक्षण करता है। 
  • भ्रूणावस्था में लाल रुधिराणुओ  का निर्माण करता है। 
  • कुछ इंजेक्शन प्रचलन में है, जिनसे मूत्र का निर्माण तेजी से होता है।  
  • भय की अवस्था में भी मूत्र त्याग अधिक होता है जबकि हैजे की बिमारियों में मूत्र की मात्रा बिल्कुल कम हो जाती है। मधुमेह में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
  • यकृत पित्त का स्त्रावण करता है, जो पित्ताशय (Gall bladder ) में सचित होता है तथा ग्लाइकोजन संग्रह करता  है। 
  • यकृत प्रोटोन उपापचय में भाग लेता है, जिसके फलस्वरूप अमोनिया, यूरिया आदि उत्पन्न होते है।   यूरिया में बदल देता है। 

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